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मैं पथिक चलता कैसे पथभ्रष्ट हुआ उजाला मैला,
ताल धड़ंग तलाशने उजाले को अंधियारे में निकला,
वो मतंग रौशनी रजनी की आती बादलों को जाति रही,
अथक चलते रहने को विवश ये पाद इसी आशा में,
प्रकाश पुंज आता यहीं पश्चात अंधियारे के।
- चहेता दर्श
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