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तुझे क्या कहूँ मेरी ज़िन्दगी बड़ी आज-कल से उदास है
कोई साथ हो तो यूँ लगता है कि हर एक शख़्स शनास है
अभी ज़िन्दगी की सहर हुई है अभी न देखा कोई समाॅं
तो ये पेड़ों की अभी सब्ज़-गाम न जाने क्योंकर उदास है
मेरे इस चमन को उजाड़ने कई आ गए यहाँ हादसें
मुझे आज तक उसी सर ज़मीं से कुशादगी की ही आस है
वो जो दूर है किसे है ख़बर वही दर्द-ए-दिल की दवा भी है
तुझे क्या बताऊँ मैं ज़िंदगी मेरा हम-नशीं ज़रा ख़ास है
ये मुहब्बतों की है जंग भारी जो जीत के भी हताश है
तेरे दर को छोड़ के जाना है ये मेरी नज़र को न रास है
~ सुकेशिनी बुढावने
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