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न सुनता दिल की फ़ुर्सत से दुआ कोई
न बैठा मुंतज़िर मेरा ख़ुदा कोई
मैं ने ख़ल्वत में बरसों यूँ गुज़ारे हैं
न गुज़रे इस डगर से ख़ुश-नुमा कोई
तुम्हें मैं याद करती हूँ रिवायत सी
न पाई
न बैठा मुंतज़िर मेरा ख़ुदा कोई
मैं ने ख़ल्वत में बरसों यूँ गुज़ारे हैं
न गुज़रे इस डगर से ख़ुश-नुमा कोई
तुम्हें मैं याद करती हूँ रिवायत सी
न पाई
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