
Share0 Bookmarks 42 Reads0 Likes
अक्सर बैठ जाता
दरवाजा बत्तियां
बंद कर
अँधेरों से भरे कमरे में
कि शायद
वो न देख सकेगा
अब पहुँच से बाहर हूँ
उसकी
लेकिन कुछ ही
समय पश्चात
छलक उठता
वो
पलकों की कोर से
<
No posts
No posts
No posts
No posts
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments