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नदी जलहीन होगी कूप सारे सूख जायें
अगर ये आँख के आँसू हमारे सूख जायें
ग़रीबी भुखमरी से हे विधाता तंग आकर
न बस्ती के चमकते चाँद तारे सूख जायें
कि जैसे जल रहे हैं गुर्बतों की आग में वो
अगर ये आँख के आँसू हमारे सूख जायें
ग़रीबी भुखमरी से हे विधाता तंग आकर
न बस्ती के चमकते चाँद तारे सूख जायें
कि जैसे जल रहे हैं गुर्बतों की आग में वो
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