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किसी की बेरुख़ी है या सनम हालात का दुःख
परेशां हूँ हुआ है अब तुझे किस बात का दुःख
तुम्हें तो पड़ गई हैं आदतें सी रतजगों की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुःख
जमाती सर्दियाँ, फुटपाथ का घर, पेट ख़ाली
परेशां हूँ हुआ है अब तुझे किस बात का दुःख
तुम्हें तो पड़ गई हैं आदतें सी रतजगों की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुःख
जमाती सर्दियाँ, फुटपाथ का घर, पेट ख़ाली
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