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मतलबी दौर की इस दुनिया में,
होके बर्बाद हम भी बिखरे हैं,
जो भी शाईस्तगी बची है कुछ
वो मेरी फ़र्दियत के चिथड़े हैं ।
कामयाबी के दौर में साहब
कसीदे पढ़ते जो न थकते थे
जो मेरे रोज जाना महफिल थे
वो भी सब दोस्त-यार बिछुड़े हैं ।
वक्त कितना खराब हो क्यूं ना,
आसरा हो तो कट ही जाता है ।
वो जो कचरे सा दिख रहा है ना,
वो मेरे आशियां के टुकड़े हैं ।
राह ए बाजार में जो करकट है
वो तो उठ जाता है सुबह हर रोज
दर्द ए दिल उनका पूछिये साहब
जिनके गुलजार बाग उजड़े हैं ।
फ़र्दियत - personality
शाईस्तगी - politeness
होके बर्बाद हम भी बिखरे हैं,
जो भी शाईस्तगी बची है कुछ
वो मेरी फ़र्दियत के चिथड़े हैं ।
कामयाबी के दौर में साहब
कसीदे पढ़ते जो न थकते थे
जो मेरे रोज जाना महफिल थे
वो भी सब दोस्त-यार बिछुड़े हैं ।
वक्त कितना खराब हो क्यूं ना,
आसरा हो तो कट ही जाता है ।
वो जो कचरे सा दिख रहा है ना,
वो मेरे आशियां के टुकड़े हैं ।
राह ए बाजार में जो करकट है
वो तो उठ जाता है सुबह हर रोज
दर्द ए दिल उनका पूछिये साहब
जिनके गुलजार बाग उजड़े हैं ।
फ़र्दियत - personality
शाईस्तगी - politeness
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