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मतलबी दौर की इस दुनिया में,
होके बर्बाद हम भी बिखरे हैं,
जो भी शाईस्तगी बची है कुछ
वो मेरी फ़र्दियत के चिथड़े हैं ।
कामयाबी के दौर में साहब
कसीदे पढ़ते जो न थकते थे
जो मेरे रोज जाना महफिल थे
वो भी सब दोस्त-यार बिछुड़े हैं ।
वक्त कितना खराब हो क्यूं ना,
आसरा हो तो कट
होके बर्बाद हम भी बिखरे हैं,
जो भी शाईस्तगी बची है कुछ
वो मेरी फ़र्दियत के चिथड़े हैं ।
कामयाबी के दौर में साहब
कसीदे पढ़ते जो न थकते थे
जो मेरे रोज जाना महफिल थे
वो भी सब दोस्त-यार बिछुड़े हैं ।
वक्त कितना खराब हो क्यूं ना,
आसरा हो तो कट
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