चलता रहा मैं, जिंदगी के इस सफर में।
सपने बहुत बड़े थे ,मंजिल बहुत दूर था।
सपनो को हकीकत में बदलने का बड़ा ही जुनून था।
जब रास्ते देखे तो लगा, यह सफर बहुत कठिन था।
अपने होंसलो को इस कद्र मजबूत किया कि,
कठिन रास्तों पर चलना ही मेरा इम्तिहान था।
शूल भी थे, कंकड़ भी थे इस राह में।
आंधियां भी थी, तूफान भी थे इस कतार में।
हवा का हर एक झोंका मेरे खिलाफ था इस शहर में।
खुदा की रहमत भी काम ना आई मेरे इस कहर में।
तलवार की धार सा था यह पथ, जिंदगी का,
पर नंगे पांव ही चलता रहा जिंदगी के इस सफर में।
अंधियारा था , सुनसान सा था।
जंगल था , चीते का घर भी था राह में।
आंखों में ओझल था, धुंधला सा नजारा था।
दूर दूर तक कोई अपना भी नहीं था इस डगर में,
पर बिन आंखों के ही चलता रहा जिंदगी के इस सफर में।
दुनिया गिराती रहीं, मै उठता रहा।
दुनिया सुलाती रही, में जगता रहा ।
दुनिया भटकाती रही , मै मंज़िल ढूंढता रहा।
दुनिया ने पत्थर फैंके, मैं उन्ही पत्थरो से घर बनाता रहा।
हार कर बैठ गई यह दुनिया ,अपने ही घर में।
मैं औरों के बिन परवाह चलता रहा जिंदगी के इस सफर में।
स
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