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देखकर तेरी आँखों को , मैं
युं ही बेचैन हो जाता हुँ,
पढ़ना चाहता हुँ तेरी आँखों को,
मगर खुद को उनमें खोया हुआ पाता हुँ,
तेरी आँखों की कश्ती में,
जहाँ किनारा ढूँढना चाहता हुँ,
वहाँ उन आँखों की मस्ती में,
खुद को डूबता हुआ पाता हुँ।
आशीष सिंह
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