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हर इंसान की तक़दीर

mukesh Kumar Modimukesh Kumar Modi June 1, 2022
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*हर इंसान की तक़दीर*

पापकर्मों के समापन की, करनी होगी शुरुआत
वरना पाते रहेंगे हम, दुख दर्द के अनेक आघात

झांको जरा अन्तर्मन में, प्रत्येक दिन का अतीत
कैसी कैसी मुश्किलों में, ये जीवन हुआ व्यतीत

कलह क्लेश से भरा रहता, जीवन का हर दृश्य
एक पल का सुकून भी रहता, नजरों से अदृश्य

मन की भावनाओं को, हर कोई चुभाता है कांटे
स्वार्थ के वश होकर, सब सम्बन्ध भी हमने बांटे

करता है हर कोई, कृत्रिम सुन्दरता से आकर्षित
मन में भरी कुटिलता हमें, कभी ना होती दर्शित

जाने कब से चला आ रहा, घाव लगाने का दौर
कब तक यूं ह

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