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एक ऐसा भी वक्त हुवा
पिंजरे के पंछी आज़ाद हुवे
महलो में रहने वाले भी इस दिन पिंजरे में कैद हुवे
इतना मजबूर इंसान हुवा
ईश्वर से चेहरा छुपाया हुवा
मोत भी माथे पर मंडराती हुवी
अस्पताले भी सब भरी हुवी
इतने इंसान की मोत हुवी
मुर्दो को भी जगा किस्मत न हुवी
इतनी कठोर परिस्थिति हुवी
सब हथियारे भी भरे हुवे
कुछ काम ना वो आते हुवे
सब का अभिमान भी चूर हुवा
कुछ रास्ता भी मिलता न हुवा
इतना मजबूर इंसान हुवा
कुछ अच्छा भी इस दौर में हुवा
भरे पड़े रास्ते सब शांत हुवे
रेलवे की भागदौड़ बंध हुवी
आसमान में धुंवा बंध हुवा
नदियां-तालाब भी शुद्ध हुवी
ईश्वर भी ये देख खुश हुवा
इंसान का अभिमान चूर हुवा
इंसान कुदरत से हारा हुवा
कुदरत से बड़ा न इंसान हुवालो
आज ये साबित हुवा
- birju gohel
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