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आह जवानी !
तु क्यो खुदको व्यर्थ गवाती है ? अरे हाँ , वासना , डर , लालच
तुझे अभी ही तो लुभाती है ,
ये जंग है समुद्र की भांति ,
ना यहां वक्त का पता है ,
ना यहां दिल किसी का लगा है ,
पा ले तु खुदको ही ,
पा लेने का ज्ञान रुक मत जाना तु ,
भर उडाना ,
गर्म जोश नही शांत होश ला खुदमे ,
मिलेगी जीत हौसला गिरे नही,
चढ़ते जाना जब तक अंतिम सीढ़ी न हो
बस कोई हार आखीरी न हो
बस कोई हार आखिरी न ही
आह अवानी !
तु प्रकाश को पा
खुद को पाकर तु मीट जा
जी - ले तु एक पल ,
किसने देखा अगला कल
आह जवानी
तु मीट जा
आह जवानी
तु उड़ जा
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