
ए जिन्दगी तुम कैसी प्यास हो। जो मिटती ही नहीँ। हर कोई तुमसे ही मिलना चाहता, न जाने तुम कैसी आस हो? मौत ही तो महबूबा है, जो साथ लेकर जाएगी ही एक दिन। जिन्दगी को फिर कोई बेवशी से क्योँ काट रहा रोज गिन गिन। ए जिन्दगी तुम कैसी प्यास हो..... जो मिटती ही नहीं, हर कोई तुमसे ही मिलना चाहता, न जाने तुम कैसी आस हो। तू तो बेवफा है,सबों को तू ठुकराता है, फिर तेरी ही गीत सब कोई क्यों गाता है। ए जिन्दगी तुम कैसी प्यास हो...... तू मन का भी नहीं, मन तो तुमपर मरते रहता है, रोज एक उम्मीद देती हो जीने की। घायल होकर फिर तुझे पाने को हर दुख सहता है। ए जिन्दगी तुम कैसी प्यास हो....... जो मिटती ही नहीं, न जाने तुम कैसी आस हो ?
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