
अक्स दिखाता लहजा उसका आँखें उसकी खंजर हैं
उससे आँख मिलाने वालों की तक़दीर मुक़र्रर है
उससे मिलके उसका न हो ऐसा कोई शख्स नहीं
उसपे लिखने वालों की पूरी तक़रीर मुक़र्रर है
उसको नहीं तन्हाई का ग़म कोई रहे कोई जाये
खुद में मुकम्मल है खुद में पूरी की पूरी लश्कर है
मर्ज़ मेरा पहचानती है वो जिक्र नहीं करती इसका
मुझको बातों में उलझाते खुद मेरे चारागर हैं
दो बातें उससे हो जाएं उसमे भी खुश रहता हूँ
आशिक़ दिल को पर मेरे इतना भी कहाँ मयस्सर है
उसकी गली से मै हो आया उसकी नहीं पर दीद हुई
वो जिसे चाहे वो उसे देखें इतनी अनोखी गोहर है
जिधर भी जाती है सुनता हूँ लोग बहुत खुशहाल उधर
जिनको भी अपनाकर छोड़ा वो सब धरती बंजर है
उसको गुमां हो जाये सो उससे नहीं कहता हूँ वरना
ये जो कुछ भी मै कहता हूँ तुम ये समझो कमतर है
अभी कहानी शुरू हुई है सब्र करो धीरज रक्खोै
प्यार निभाना जीवन भर है प्यार में पड़ना पल भर है
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