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उसको देख के लोग कहे हैं पागल तो मै ठीक हुआ हूँ

मेरी जगह कोई और भी होता हश्र तो सबका एक ही होता

ख्वाब तो वो भी देखती होगी वो भी संजोती होगी सपने

उसके ख्वाबो की माला में काश एक मोती मै भी होता

दुनिया में जिन जानवरो की ज़िन्दगी हमने बदतर की है

वो इतना तो सोचते होंगे आदमी न होता बेहतर होता

उसने जो भी सोच लिया है वो न हो ये हो नहीं सकता

मेरा भी इरादा काश की उसकी तरह फौलादी होता

उससे नज़रें मिलते ही क्यों मेरी नज़रें झुक जाती हैं

मैंने अपने ही मेहबूब को कभी आँख भर के नहीं देखा

उसका वज़ूद ही लोगों में उसका एहतिराम भर देता है

बेइज़्ज़त क्या करेगा कोई उसका कहा किसी से न टलता

चाहता वैसे हूँ उसको पर मुझमे कुछ भी खास नहीं है

हाँ गर फिर भी वो मुझे चाहे सोचो कितना अच्छा होता

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