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ओ स्त्री कौन है तू, क्या है तू,
तू तो एक दयानी है।
हाँ सीता सी पवित्र है तू,
सीता सी स्वाभिमानी है।
आत्मसम्मान की रक्षा की जो
द्रौपदी सी ठानी है।
है जोगनी मीरा सी तू,
प्रेम की तू दीवानी है।।
यम से अपना पति ले आई,
सावित्री सी सायानी है।
है ममता का स्वरुप तू,
देवकी, यशोदा सी सबने जानी है।।
है सुंदरता मेनका सी,
तपस्या जो तूने तुड़वानी है।
कोशिशें तुझमें सुपनखा सी,
इच्छापूर्ति की एक कहानी है।
सदियों से पत्थर में बदली ,
अहल्या सी दोषी मानी है।
पतिव्रता तू गंधारी सी,
आँखों पर जो पट्टी बाँधी है।
ओ स्त्री कौन है तू, क्या है तू,
तू तो एक दयानी है।।
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