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अनुगृहीत हुँ माँ के वात्सल्य की ,
जिसका न आदी है न अंत
अनुगृहीत हुँ ,
माँ अस्तित्व की ,
जिसने अस्तित्व की सम्भावना को ,
जन्म देने के लिए धारण किया
एक ऐसी भूमि मे पल रही जहाँ
माँ के मिटते ही अस्तित्व का नवपल्लव
माँ का वात्सल्य कितना अदभुत है ,
जहा एक भ्रूण ,
माँ को चीर कर ,
बाहर आता ,
जिसका पता माँ को भी नही
सर्मपण है माँ ,
कृतज्ञता से ,
अस्तित्व के बीजो को धारण
कर
प्रगाढ़ बोध को जन्म देने
अनुगृहीत हुँ जन्मदात्री के वात्सल्य की ,
जिस वात्सल्य का न आदी है न अंत
भावना कुमारी व्यास
10/3/2023
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