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भीतर के चित्ताआकाश में
बनते बिगड़ते सारे चेहरे
बाहर चित्र के रूप में
अभिव्यक्त होते हैं
चित्र वही उबर के आते हैं
जो अंतस में घट रहे होते हैं
यह चित्र क्रिया से बाहर
आते हैं
प्रतिक्रिया में प्रकट होते हैं
जब भी भीतर से खुशी की ,
क्रिया होती
बाहर दर्पण में भी खुशी की
प्रतिक्रिया होती
भीतर उदासी छा जाती
वैसे ही बाहर उदासी छा
जाती
भीतर के ब्रह्मांड में क्रोध
उमड़ के आता
ऐसे ही बाहर के ब्रह्मांड में
क्रोध का निर्माण होता
भीतर रोने का चेहरा बनता
बाहर भी बनते रोने के चेहरे
इंद्रधनुष के रंग की तरह
भीतर बाहर बनते बिगड़ते
चेहरों की चित्राभिव्यक्ति
भीतर के भावों से बने चेहरे
बिना क्या कोई ऐसा चेहरा है
जो स्थितप्रज्ञ है ?
भावना कुमारी व्यास
13/5/2023
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