
Share0 Bookmarks 35 Reads1 Likes
यह बाहर गृहयुद्ध दिख रहा
यह समस्त मानव के
घर-घर की घृणा ,
जो आज बारूद बन कर
देश विदेशों के बीच में दिख रही
न जाने कितने मासूम
बली चढ़ गए ,
घृणा के vibration जाते हैं
स्वयं के भीतर की कड़वाहट से
आपसी संबंधों के कड़वाहट से
छोटी-छोटी बात पर बनी गांठ से
यह वही घर की घृणा जो जातिवाद
में दिख रही ,
यह वही घृणा जो एक मां के
लाल के हाथों दूसरे मां के
लाल को मौत के घाट उतार रही
यह वही घर घर की घृणा जो
आज आतंकवादी के रूप में दिख रही
यह वही घृणा है जो हर देश के
सरहद पर तैनात ,
यह आपसी देशों में युद्ध करके
क्या घृणा का अंत हो जाएगा
नहीं ऐसा करने से घृणा
यह खूबसूरत पृथ्वी जिसे मानव
आपसी घृणा से नष्ट कर देंगे
सब मानव कहते हैं युग परिवर्तन
चल रहा है
क्या ऐसे आएगा युग परिवर्तन
युग परिवर्तन जब होगा
युग परिवर्तन का प्रश्न ही गलत
जहां बात युग की है अर्थात
वहां हैं काल जहां काल हैं
वहां मैं हूं
जब मनुष्य जाति अपने भीतर से
घृणा की गांठ का दाह संस्कार करेंगे
घृणा के सम्मोहन को तोडेंगे
यह जो बेहोशी में जीने की आदत
पड़ गई
इस आदत को तोडेंगे
अपने भीतर से मैं मिटेगा
वहां अस्तित्व अपनी मर्जी से
कृपा की बारिश कैसे करेगा ?
अब अस्तित्व जाने
मशीन बने मानव में
वह होश में कैसे घटेंगे ?
भावना कुमारी व्यास
25/4/2023
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments