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यह बाहर गृहयुद्ध दिख रहा
यह समस्त मानव के
घर-घर की घृणा ,
जो आज बारूद बन कर
देश विदेशों के बीच में दिख रही
न जाने कितने मासूम
बली चढ़ गए ,
घृणा के vibration जाते हैं
स्वयं के भीतर की कड़वाहट से
आपसी संबंधों के कड़वाहट से
छोटी-छोटी बात पर बनी गांठ से
यह वही घर की घृणा जो जातिवाद
में दिख रही ,
यह वही घृणा जो एक मां के
लाल के हाथों दूसरे मां के
लाल को मौत के घाट उतार रही
यह वही घर घर की घृणा जो
आज आतंकवादी के रूप में दिख रही
यह वही घृणा है जो हर देश के
सरहद पर तैनात ,
यह आपसी देशों में युद्ध करके
क्या घृणा का अंत हो जाएगा
नहीं ऐसा करने से घृणा
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