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हर सहर, हर सड़क, हर गलियां मैंने माप ली,
खोज में मैने उसके दुनिया मुट्ठी में भी नाप ली!
मिल नहीं रहा है वो, चाहे जितना भी मैं दौड़ लूं,
है कौन खोया यहां जिसके मैं खोज में हूं!!
दर दर भटका, घर घर पूछा, पूछा मैने नदियों से,
हवाओं ने भी मुंह फेरा नहीं पता है बोल के!
पंक्षियों से भी तो मैने गुटुर्गु कर के देख ली,
है कौन खोया यहां जिसके मैं खोज में हूं!!
खून पसीना एक हुआ, पांव भी है खूब चली,
थकान को भी दूर किया मिलने की आशा दे के उसकी!
है कहां छुपा वो, राह को न जाने किस चल पड़ा,
है कौन खोया यहां जिसके मैं खोज में हूं!!
है कौन खोया यहां जिसके मैं खोज में हूं,
पाया हीं कुछ कहां जो उसके खोने के डर में हूं!
मैं तो जेब से फ़कीर, दिल से थोड़ा अमीर हूं,
ठिकाना मिल जाए बस, खोज मे अपने घर को हूं!!
है कौन खोया यहां जिसके मैं खोज में हूं!!
©Bhavarun
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