
घिर गया हूं
उदासी के जाल में
तुम्हारा प्यार ही एकमात्र दवाई है
खींच ले मुझे अंधेरे से उजाले में
उदास हूं
तुम्हारी बेरुखी से
बातें हुए भी तुमसे
अरसा हो गया
तुम कभी मेरी होगी कि नहीं
यह चिंता मेरे को खा गई
सूख गया हूं मैं कांटे की तरह
तुम्हारे प्यार में
पूछते हैं सब मुझे
तुम्हें क्या हो गया है
जानती तो सिर्फ तुम ही हो
मुझे तुमसे प्यार हो गया
सांझ होते ही
तुम्हारी ख्यालों में खो जाता हूं
मुझे चैन नहीं है
मैं बेचैन हूं तुम्हारे बिना
तुम्हें शायद कोई खबर ही नहीं मेरी
मैं तो सब तुम्हारे लिए ही लिखता हूं
तुम पढ़ती हो कि नहीं मुझे यकीन नहीं है
तुम्हारी मजबूरियां समझता हूं
इसीलिए तो हाथ पर हाथ धरे बैठा हूं
तुम्हारे मान को
मैं अपना अभिमान समझता हूं
तुम्हें पाना नहीं
तुम्हें जीना चाहता हूं
समय-समय पर तुम
हाल मेरा पूछ लिया करो
इतना हक है मेरा तुम पर
मैं तुमसे प्यार करता हूं
उदास हूं
तुम्हारी बेरुखी से
~भरत सिंह
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