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कविता की अनुपस्थिति में
कलम से यारी हो गई
कलम से हाथ मिलते ही
कल्पनाएं जागृत हो गई
कविता फिर
दूर होकर भी पास हो गई
शुक्र है ईश्वर का
मैंने कविता से
बेवफाई तो नहीं की
पास थी तो प्रेम किया
दूर है तो प्रेम पत्र लिखते रहे
बस डूबा रहा मैं कविता में
मिलोगे जब कविता
सुनना दिल से दिल की
मेरी कविता
दिल की समझने के लिए
दिल लगाना पड़ता है
दिमाग नहीं
जिस दिन देखा था तुमने
विश्वास भरी निगाहों से
उसी दिन
दिल की दिल से हामी हो गई
सपनों ने फिर डेरा डाल दिया
प्रेम का झरना फूट पड़ा
शब्द से शब्द जुड़ गए
कविता की शक्ल ले ली
मिलोगे जब कभी कविता
सुनना दिल से
मेरी कविता
~ भरत सिंह
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