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मैं वैसा ही हूं
जैसा तुम ने पसंद किया था
जिस पर तुम अपने आप से ज्यादा विश्वास करती थी
मैं वहीं खड़ा हूं जहां तुम छोड़ कर गई थी
क्या भ्रम पाल लिए
क्यों दूरियां बना ली
बिना जुर्म की सजा सुना दी
यह कैसी दोस्ती निभाई तुमने?
मैं वही हूं
जिस पर तुम दुनिया में सबसे ज्यादा विश्वास करती थी
अपने दिल के सब दुख दर्द बता दिया करती थी
मेरी सहानुभूति से तुम मजबूत हो जाया करती थी
मैं वही हूं तुम्हें कांटा भी चुभ जाए तो रो देता हूं
मैंने कुछ नहीं मांगा तुमसे क्यों मुंह फेर लिया तुमने
मैं सिर्फ देना चाहता हूं तुमको दुनिया की सारी खुशियां
~ भरत सिंह
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