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सज संवर के जब तुम आती हो
नागिन सी जब तुम चलती हो
धरती सी जब हिलती है
मेरा दिमाग सन हो जाता है
सामने तुम जब आते हो
आंखें तुम जब मिलाती हो
मैं बावला हो जाता हूं
बातें जब तुम मुझसे करती हो
कोयल की सी मधुर आवाज
जब कानों में मेरे पड़ती है
मैं मस्त हो जाता हूं , तुम्हें देखता मैं रह जाता हूं
बोल नहीं मैं कुछ पाता हूं , मैं बावला हो जाता हूं
खयालों में तुम ही रहती हो
सोता हूं तो सपने में आ जाती हो
फिर तुम लाड बहुत लडाती हो
वादे सारे अपने निभा जाते हो
सपनों में ही तुम मेरे सारे सपने पूरे कर जाती हो
नींद मेरी जब खुलती है
ढूंढता मैं तुझको पूरे घर में घूमता हूं
नहीं मिलती हो जब तुम मुझे , मैं बावला हो जाता हूं
~ भरत सिंह
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