
मैं लिख कर दे दूंगी
तुम्हारी शिकायत
सर्वोच्च न्यायालय में
खोल दूंगी भेद सारे
बस गए हो तुम दिल में मेरे
सपने में भी आते हो
फिर मनचाही तुम करते हो
सपने से ओझल होते ही
दरवाजे पर खड़े मिलते हो
परेशान बहुत करते हो
ना तुम सोते हो
ना मुझको सोने देते हो
कर दूंगी मैं तुम्हारी शिकायत
क्यों इतना प्यार मुझसे करते हो?
प्यार में मेरे
शायरी भी लिखते हो
कभी बारिश में भिगोते हो
फिर प्यार वाले गाने तुम गाते हो
सर्दी में, गर्मी में, बसंत में, सुख में ,दुख में
और हर उत्सव में
तुम मुझे याद करते हो
सारी दुनिया अब मुझे
तुम्हारी कविता कहकर बुलाती है
परछाई बनकर तुम मेरे साथ चलते हो
कभी प्रियसी , कभी कविता कभी जानेमन
मुझे कह कर बुलाते हो
कर दूंगी मैं तुम्हारी शिकायत,
क्यों इतना प्यार मुझसे करते हो?
अब कोई समझौता मुझे स्वीकार नहीं
सात फेरे लेकर संग तुम्हारे
सातों जन्म बनो कविता तुम्हारी
तुम इतना प्यार जो मुझसे करते हो
~ भरत सिंह
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