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फौजी हूं वैसे तो सामाजिक आयोजनों में शामिल होने का कम ही अवसर मिलता है , बचपन में सामाजिक प्रथाओं के बारे में समझ नहीं थी, आज अर्धांगिनी से फोन पर बात हो रही है थी तब उसने कहा "मैं पड़ोस में शादी है वहां 'दिखावा' देखने जा रही हूं बाद में कॉल करना"!

'दिखावा' शब्द मेरे कान में पढ़ते ही मेरे मस्तिष्क में वैचारिक युद्ध शुरू हो जाता है पता नहीं क्यों मुझे अच्छा महसूस नहीं होता वह तो फोन काट कर चली गई दिखावा देखने के लिए। मैं लड़ता रहा अपने आप से 'दिखावा' एक ऐसी परंपरा है जो बचपन से देखते हुए आ रहे हैं इसमें शादी में दहेज या अन्य किसी उत्सव में जो भी दिया जाता है उसको सभी ग्राम वासियों को बुलाकर उसका प्रदर्शन किया जाता है, चूंकि प्रथा बहुत पुरानी है हमारे जन्म से पहले की है बुजुर्ग भी से बड़े चाव से करते आ रहे हैं अतः इसका विश्लेषण करने में थोड़ा संकोच तो होता है लेकिन यह शब्द 'दिखावा' मुझे बार-बार सोचने को मजबूर करता है , फौज में भी हमारे यहां एक ऐसी ड्रिल होती है जिसमें महीने की आखिरी दिन में समस्त हथियार एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी को चार्ज दे दिए जाते हैं बाहर प्रदर्शन कर रखे जाते हैं , और एक- एक हथियार और गोला बारूद गिनती किया जाता है, अगले 1 महीने तक उनके रखरखाव का वही जवाबदार होता है, यह मसला तो जिम्मेदारी का है, किंतु दिखावा वाली सामाजिक ड्रिल मुझे पसंद नहीं , इसे किसी अहंकारी या लालची व्यक्तियों ने समाज में अपना दबदबा स्थापित करने के लिए ने शुरू किया होगा जो धीरे-धीरे यह कुरीति एक प्रथा बन गई। इससे समाज में दहेज देना एक स्टेटस समझा जाने लगा और धीरे-धीरे इस ने विकराल रूप ले लिया जिससे कन्या भ्रूण हत्या , लैंगिक असमानता आदि समस्याओं ने जन्म लिया आज हरियाणा राजस्थान जैसे प्रदेशों में लड़कों की शादी के लिए सरकारी नौकरी एक अनिवार्यता जैसी बनती जा रही है , आज के समाज में ऐसी प्रथाओं पर अंकुश लगाने की जरूरत है , आप अपनी श्रद्धा से किसी भी उत्सव में कुछ भी दान दे पर उसका दिखावा ना करें तो ऐसी समस्याओं को सुलझाने में आसानी होगी, दहेज लेने और देने वाले दानों का भी सामाजिक रूप से बहिष्कार करना होगा , जिससे समाज में फैली लैंगिक विषमताओं और दहेज के लिए लड़कियों की प्रताड़ना जैसी समस्याओं पर अंकुश लगेगा वैसे हमारे देश में दहेज विरोधी कानून तो बहुत बने लेकिन कानून न माने का हुनर हम भारतीयों में बहुत उम्दा है, आज के युवा को बदलाव लाना होगा आज का युवा कल अभिभावक होगा! दहेज में मिली गाड़ियों में आज का युवा छाती चौड़ी कर कर घूम रहा है लानत है ऐसी जवानी पर शर्म से डूब कर मर जाना चाहिए!


~ भरत सिंह


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