अनिच्छा वाली दौड़'s image
Poetry2 min read

अनिच्छा वाली दौड़

Bharat SinghBharat Singh April 6, 2023
Share1 Bookmarks 149 Reads2 Likes

मैं दौड़ता गया

अनिच्छा वाली दौड़ में

मैं होना चाहता था जो हो ना पाया

गरीब किसान का बेटा था

अपने मन का कुछ न कर पाया

जरूरतों के आगे

सपनों ने आत्मसमर्पण कर दिया

ना जाने क्यों फिर भी

मैं अव्वल आया हर दौड़ में

मां-बाप की ईमानदारी

कठिन समय में भी उनकी

जिंदादिली और जीवंतता

बस यही सब

मेरी आंखो में तैरती रहते

इसीलिए शायद

मैं जीत गया

जीवन की हर दौड़ में


आज जीवन के दूसरे पड़ाव पर

जीवन में कुछ स्थिरता आई है

शांत में एकांत में

विश्लेषण करता हूं जब

अपनी अब तक की जीवन यात्रा का

देखता हूं पाता हूं

आज भी असंख्य युवा दौड़ रहे हैं

अनिच्छा वाली दौड़ में

क्या यही जीवन है?

सब कुछ इच्छा के मुताबिक हो जाए

तो संघर्ष भी शून्य हो जाएगा

मैंने सुना है

जीवन तो संघर्ष का ही दूसरा नाम है

इसीलिए मुझे पछतावा नहीं

अपनी अनिच्छा वाली दौड़ का

कम संसाधनों में

जीतना है हर मैदान में

यही तो जीवन है

विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानना

~ भरत सिंह



No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts