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एक मनुहार है प्रिये!
मान भी जाना आज!
पंथ आंख बिछाए बैठी हूं
मंद मंद देखो!आना आज!
किया है संपूर्ण समर्पण मैंने
अपूर्ण समझ न तजना आज !
तुम जरूरत नहीं एक आदत हो
मेरी एक मात्र अपाहिज चाहत हो!!
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