
ज्ञानी को ज्ञान से ना आके यह कर्म संसार ।
मनुज समझ नहीं पा रहा, जाए नदियां पार ।।
किया विचार संग तेरे, सजाऊं सात की माल ।
जीवन डूब बिन रस कहीं, भले आए यह काल ।।
माने जाने चाल ही, हैं मोल भाव अनमोल ।
ना करें विचारों से कहीं, कहीं भले सम्माेल ।।
सर्व विपदा आ खड़ी, हुई राज परीक्षा आज ।
लेखनी बनती हृदय से मसी ना माने काज ।।
प्रेम पुतल पूरक भी पुस्तक का आधार ।
नैया गंवाई चंचल नील से हों गया विधार ।।
कला यह कमल की महके अक्षर ज्ञान।
जीवन पथ में ना रखें किंचित अभिमान ।।
राधा जैसा रुप उसका सजी लिए थाल ।
प्रेम करें अमोल से पनपे ना कभी भाल ।।
एक दिवस आया आज, फूल कमल हाथ ।
पीर पराई हों चली, राह पकड़ी मेरा हाथ ।।
एक दिवस आया आज, फूल कमल हाथ ।
पीर पराई हों चली, राह पकड़ी मेरा हाथ ।।
डूबा हूं उस पथ पर, चंचल मन का मेल ।
तुम हो मेरी काव्या, जीवन को अब झेल ।।
उसके हृदय प्रेम हैं जैसे वीर रस योग ।
माया के संसार में, कब होगा संयोग ।।
कमल खिला कीचड़ में, चढ़े मूरत फूल ।
यह देव भक्ती से मनोरम रहें यह कुल ।।
पार-द्वार कान्हा से, नहीं किंचित अनजान ।
उसी मंदिर पूजा ही, आरती से हों सम्मान ।।
साहित्यकार भारमल गर्ग
पुलिस लाईन जालोर (राजस्थान)
bhamugarg@gmail.com
फोन +91-8890370911
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