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काल को परास्त करता वो ही त्रिकाल है ।
तांडव करता कैलाश पे वो ही महाकाल है ।
शंभु नाथ है वो और गले में सर्प माल है ।
सृष्टि का सृजन करता केन्द्र बिंदु महाकाल है।
काली का है क्रोध वो और धधकती मशाल है।
शिव बैठा मेरे साथ अब किसकी क्या मजाल है।
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