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कभी वक्त मिले… तो पढ़ना मेरी कविताएं
तुम पढ़ना मेरी कविताएं, जो मैंने रातों को लिखा है।
कुछ किस्सों को लिखा है, तो कुछ बातों को लिखा है।
तुम पढ़ना मेरी कविताएं, जो मैंने रातों को लिखा है।
खुद को मुसाफ़िर, और तुम्हें मंजिल लिखा है।
खुद को एक कश्ती, और तुम्हें साहिल लिखा है।।
खुद को कैदी और… तुम्हें आज़ाद लिखा है।
मैंने ख़ुद को बर्बाद और तुम्हें आबाद लिखा है।
और नाम कहीं भी पढ़ना मेरा… तो देखना
मैंने हर जगह… अपना नाम तुम्हारे नाम के बाद लिखा है।।
और इससे आगे ज़्यादा कुछ नहीं लिखा…
बस जुदाई के कुछ लम्हों को लिखा है, तो कुछ मुलाकातों को लिखा है।
हां! मैंने अपने शब्दों में, तुम्हारे जज्बातों को लिखा है।
तुम पढ़ना मेरी कविताएं, जो मैंने रातों को लिखा है।।
कुछ अश्क अपना तो, कुछ गम तुम्हारा लिखा है।
इस आधी अधूरी मोहब्बत में, मैंने तुम्हें सारा का सारा लिखा है।
और...
उनमें ढूढोंगी…
तो पाओगी मुझे, कि मैंने ख़ुद को आज भी तुम्हारा लिखा है।
तुम को चांद और स्वयं को तारा लिखा है।
मैंने ख़ुद को बदनसीब और तुम्हें प्यारा लिखा है।।
मैंने ख़ुद को आज भी तुम्हारा लिखा है।
भगवान प्रसाद
तुम पढ़ना मेरी कविताएं, जो मैंने रातों को लिखा है।
कुछ किस्सों को लिखा है, तो कुछ बातों को लिखा है।
तुम पढ़ना मेरी कविताएं, जो मैंने रातों को लिखा है।
खुद को मुसाफ़िर, और तुम्हें मंजिल लिखा है।
खुद को एक कश्ती, और तुम्हें साहिल लिखा है।।
खुद को कैदी और… तुम्हें आज़ाद लिखा है।
मैंने ख़ुद को बर्बाद और तुम्हें आबाद लिखा है।
और नाम कहीं भी पढ़ना मेरा… तो देखना
मैंने हर जगह… अपना नाम तुम्हारे नाम के बाद लिखा है।।
और इससे आगे ज़्यादा कुछ नहीं लिखा…
बस जुदाई के कुछ लम्हों को लिखा है, तो कुछ मुलाकातों को लिखा है।
हां! मैंने अपने शब्दों में, तुम्हारे जज्बातों को लिखा है।
तुम पढ़ना मेरी कविताएं, जो मैंने रातों को लिखा है।।
कुछ अश्क अपना तो, कुछ गम तुम्हारा लिखा है।
इस आधी अधूरी मोहब्बत में, मैंने तुम्हें सारा का सारा लिखा है।
और...
उनमें ढूढोंगी…
तो पाओगी मुझे, कि मैंने ख़ुद को आज भी तुम्हारा लिखा है।
तुम को चांद और स्वयं को तारा लिखा है।
मैंने ख़ुद को बदनसीब और तुम्हें प्यारा लिखा है।।
मैंने ख़ुद को आज भी तुम्हारा लिखा है।
भगवान प्रसाद
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