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उंगली पकड़ कर चला जो मेरी बचपन में,
भुला दिया उसने सब कुछ एक क्षण में,
भूखे रहकर पूरी की जिसकी हर एक इच्छा,
बड़ा होकर लेता है मेरी ही परीक्षा,
कहता है मुझसे तुमने मुझे दिया क्या है,
तुमने मेरे लिए आखिर किया क्या है,
शायद यह उसकी बात भी सही है,
परवरिश में ही मेरी कोई कमी रही है,
हो गया थाअंधा शायद बच्चों की खुशी में,
जी रहा हूँ जीवन अपना मुफलिसी में,
आएगा एक दिन जब वो भी बाप होगा,
उस दिन शायद उसको मेरा एहसास होगा |
"बेचैन"
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