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अपने गुनाहों का दोषी मुझको बना दिया,
दुनिया तूने मुझे जिन्दगी से मिला दिया,
हम मानते थे हमेशा होती है सच की जीत,
दुनिया ने सिखाई पर हमें ये नई रीत,
सच - झूठ कुछ नहीं है, दुनिया है एक बाजार,
हर चीज है बिकाऊ, कीमत है कुछ हजार,
होते हैं फैसले यहाँ अपने हिसाब से,
हम सीखते ही रह गए बेचैन किताब से,
अपने गुनाहों का दोषी मुझको बना दिया,
दुनिया तूने मुझे हकीकत से मिला दिया,
हर कदम पर साथ थे जो वो आज दूर हैं,
हम आज समझ पाए कि कितने मजबूर हैं,
सब खुश हैं अपनी गलतियां मुझ पर डाल कर,
रख दीं
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