
महत्व तो उसका बहोट है लेकिन हम कभी जताते नहीं
ऐसे तो बाहोत कुछ बोल जाते है, बस हम मा को दिल की बात कभी बताते नहीं
तो क्यों ना अब सब कुछ मा को बता दे हम
मा के मायके का एहसास क्यों ना उसे इसी घर में ला दे हम
कहने को ये घर उसका ही है,
पर उसका सा लगता क्यों नहीं
मा भी जागती है सबके साथ देर रात तक
फिर भी सुबह मा से पहले कोई और जगता क्यों नहीं
क्यों ना सूरज की किरणों को मा से पहले जगा दे हम
मा के मायके का एहसास क्यों ना उसे इसी घर में ला दे हम
नल आने का वक़्त हो या बाई की छुट्टी की किटकिट
ये सब हमने उसी को दे रखा है
घर की हर छोटी छोटी परेशानी का ठेका
जैसे मा ने है लेे रखा है
क्यों ना इन छोटी छोटी परेशानियों को
कभी तो मा से दूर भगा दे हम
मा के मायके का एहसास क्यों ना उसे इसी घर में ला दे हम
अपनी हर छोटी ज़िद मनवा लेते है हम मा से
कभी उसकी ख्वाहिशों का सवाल क्यों नहीं करते
वो भी कभी किसी घर की ज़िद्दी लाडली रही होंगी
इस बात पर कभी गौर, कभी खयाल क्यों नहीं करते
क्यों ना उसका बचपन उसे लौटा से हम
मा के मायके का एहसास क्यों ना इसे इसी घर में ला दे हम
मा बिना कहे समझ जाती है हर बात तुम्हारी
क्या बोलने पर भी तुम उसकी बात मानते हो..?
अरे वो तो तुम्हारे पसंदीदा नूडल्स का फ्लेवर भी समझने लग गई
क्या तुम उसकी पसंद की सब्जी भी जानते हो
क्यों ना मा से नजदीक आके, उन्हें दोस्त बनाकर बातो से ये दूरियां मिटा दे हम
मा के मायके का एहसास क्यों ना उसे इसी घर में ला दे हम
जिससे पीने का पानी भी हम हाथ मै मांगते है
क्यों ना सुबह की एक प्याली चाय, उस मा के लिए हम खुद बना ले
वैसे तो वो रूठती नहीं हमसे किसी बात पर, खुद को खुद ही समझा लेती है
पर जो थोड़ी नाराज़ हो भी जाए मा, तो क्यों ना उसे हम कभी खुद भी मना ले
वो आम नहीं, बहोट खास है ये बात दिल जानता है,
ये बात क्यों ना अपने आचरण से मा को बता दे हम
मा के मायके का एहसास क्यों ना उसे इसी घर में ला दे हम
इस भाग दौड़ की ज़िंदगी में
हम मा से बाते करना ही भूल गए
बचपन में अपने दिल की हर एक बात मा को बताया करते थे
जरा बड़े क्या हुए बस अपनी दुनिया में ही घुल गए
इन झुटी दूरियों को क्यों ना हटा दे हम
वो सबसे पहली दोस्त का दर्जा क्यों ना उसे लौटा दे हम
मा के मायके का एहसास क्यों ना उसे इसी घर में का दे हम
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