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अक्सर,
दोस्त कहीं खो जाते हैं।
ऑफिस जाती कारों में,
खेतों या दुकानों में,
ऑफिस की फाइलों में,
या फिर मीटिंग की पहेलियों,
अक्सर,
दोस्त कहीं खो जाते हैं।
किराने के बिल में,
इक टूटे हुए दिल,
स्कूल की फीस में,
या फिर हॉस्पिटल बिल की टीस में,
अक्सर,
दोस्त कहीं खो जाते हैं।
अपने टूटे सपने के बोझ में,
अपनों के सपनों को पूरा करने की होड़ में,
इक बेहतर कल की दौड़ में,
फिर अपने आज को रौंदते,
अक्सर,
दोस्त कहीं खो जाते हैं।
~ विवेक
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