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दौड़ती राहों में ठहराव ढूंढ रहे है
भरी दोपहरी की छांव ढूंढ रहे है
लगा कर प्रीत नीर भरी घटाओं से
शुष्क बदली से लगाव ढूंढ रहे है
है उम्मीदें कोष्ठकों में बंद समाई
हौसले भी गिन रही इकाई दहाई<
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