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ये क़िस्मत का लिखा नही है,
मजबूरी है साहब,मजबूरी है ।।
जो देखा था ख्वाब मैंने-२
वो ख्वाहिशें अभी अधूरी है ।।
मजबूरी है साहब,मजबूरी है ।
मेरे हालात पे हँसने वाले,
मेरा हाल तू क्या जाने ।
ख़ुद को मानते हो बेदाग जो तुम,
अतीत में नही है तुझमे दाग तो माने ।।
किसी का दोष छिपा
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