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हे शिव,
सूक्ष्म कण भी तुम
ब्रह्माण्ड भी तुम
आत्मा भी तुम
परमात्मा भी तुम
साकार भी तुम
निराकार भी तुम
कल्पना भी तुम
यथार्थ भी तुम
संयोग भी तुम
वियोग भी तुम
जड़ भी तुम
चेतना भी तुम
योगी भी तुम
भोगी भी तुम
अर्धनरनारीश्वर भी तुम
कामजित भी तुम
सौम्य भी तुम
रौद्र भी तुम
आरम्भ भी तुम
अंत भी तुम
प्रणय भी तुम
विरह भी तुम
कारण भी तुम
कार्य भी तुम
जीवन भी तुम
मृत्यु भी तुम
जीत भी तुम
हार भी तुम
जीवन की हर उलझन का
हल भी तुम।
मेरे हरएक कर्म का
फल भी तुम।
अतः
निश्चिन्त हूँ मैं
जो होगा
मेरे जीवन में,
अच्छा ही होगा
क्योंकि
भूत,भविष्य,वर्तमान
के साक्षी भी तुम।
डॉ बबीता गर्ग "सहर "
स्वयं रचित
सूक्ष्म कण भी तुम
ब्रह्माण्ड भी तुम
आत्मा भी तुम
परमात्मा भी तुम
साकार भी तुम
निराकार भी तुम
कल्पना भी तुम
यथार्थ भी तुम
संयोग भी तुम
वियोग भी तुम
जड़ भी तुम
चेतना भी तुम
योगी भी तुम
भोगी भी तुम
अर्धनरनारीश्वर भी तुम
कामजित भी तुम
सौम्य भी तुम
रौद्र भी तुम
आरम्भ भी तुम
अंत भी तुम
प्रणय भी तुम
विरह भी तुम
कारण भी तुम
कार्य भी तुम
जीवन भी तुम
मृत्यु भी तुम
जीत भी तुम
हार भी तुम
जीवन की हर उलझन का
हल भी तुम।
मेरे हरएक कर्म का
फल भी तुम।
अतः
निश्चिन्त हूँ मैं
जो होगा
मेरे जीवन में,
अच्छा ही होगा
क्योंकि
भूत,भविष्य,वर्तमान
के साक्षी भी तुम।
डॉ बबीता गर्ग "सहर "
स्वयं रचित
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