
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
न जाने कैसे अज़ीब ख्वाब बुनने लगी है।
अब वो मेरी आँखों में काजल भी नहीं लगाने देती,
अब तो मेरे गालों पर लाली भी बिखेरने नहीं देती।
न जाने मेरे लिए किस उलझन को सुलझाने में घुली है।
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
अब मुझे फूलों से नहीं बल्कि काँटों से खेलना सिखाती हैं
किसी चमकीले फर्श नहीं पथरीले रास्तों पर चलने को कहती है।
मुझे न जाने क्यों किस हाल में बदलने को बैठी है,
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
खुद चाहे कितना भी रोये, पर मुझे न रोने देती है
खुद चाहे ज़मीन पर सोये, लेकिन मेरे लिए खाट हमेशा बिछती है।
किस बात के ये लाखों सवालों को मन से लगाए रहती है,
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
रेशमी कुर्ता-पाजामा नहीं, गहरे रंग की शर्ट अब मेरी अलमारी में सजी बैठी हैं
मेरी बिंदी-झुमकी-पायल-चुड़ी किसी बड़े से बक्से में छुपा कर रखी हैं,
अब वो मुझे सयानी नहीं, जवान मानने लगी हैं
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
न जाने, क्यों
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
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