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Nepali Poetry1 min read

जब शहर हमारा सोता है

Ayush72Ayush72 June 16, 2020
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जब सर्द अंधेरी रातों में

ये शहर हमारा सोता है


कोई चीथड़ से तन को ढककर

दो दाने जुठों के चखकर

बस देख-देख कर तारों को

सिसक-सिसक कर रोता है 


जब शहर हमारा सोता है


कोई दफ्तर से जब आता है

बे-मन ही मन बहलाता है

नींदों की करवट में तब वो

कई सपने मन में बोता है


जब शहर हमारा सोता है


कोई प्रेमी सूनी रातों में

अपने प्रियतम की बातों में

जग जाहिर खुशियों को लेकर

कई ख्वाहिश रोज़ संजोता है


जब शहर हमारा सोता है


एक बालक इन हालातों में

फंसता जब रिश्ते नातों में

अपने बस्ते सा भारी 

एक बोझ हमेशा ढोता है


जब शहर हमारा सोता है


एक मै भी हूं जो सोच रहा

खुद से ही खुद को पूछ रहा

है कौन भला इन शहरों में

जो पूनम की इन रातों में

गहरी नींदों मे होता है


जब शहर हमारा सोता है





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