
Share0 Bookmarks 64 Reads0 Likes
जब सर्द अंधेरी रातों में
ये शहर हमारा सोता है
कोई चीथड़ से तन को ढककर
दो दाने जुठों के चखकर
बस देख-देख कर तारों को
सिसक-सिसक कर रोता है
जब शहर हमारा सोता है
कोई दफ्तर से जब आता है
बे-मन ही मन बहलाता है
नींदों की करवट में तब वो
कई सपने मन में बोता है
जब शहर हमारा सोता है
कोई प्रेमी सूनी रातों में
अपने प्रियतम की बातों में
जग जाहिर खुशियों को लेकर
कई ख्वाहिश रोज़ संजोता है
जब शहर हमारा सोता है
एक बालक इन हालातों में
फंसता जब रिश्ते नातों में
अपने बस्ते सा भारी
एक बोझ हमेशा ढोता है
जब शहर हमारा सोता है
एक मै भी हूं जो सोच रहा
खुद से ही खुद को पूछ रहा
है कौन भला इन शहरों में
जो पूनम की इन रातों में
गहरी नींदों मे होता है
जब शहर हमारा सोता है
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments