
वो भूतों की कहानी हो
या पतंग से पेंच लड़ानी हो
वो पल अब बस यादों में ही कैद हो गए
हम आज के गुल में खुद को खो दिए
वो दोस्तो के साथ की मटरगस्ती हो
जहां क्रिकेट हर शाम की मस्ती हो
अब हम सब एक यंत्र के अधीन हुए
हम आज के गुल में खुद को खो दिए
वो दूरदर्शन की रंगोली हो
या रेडियो पर सुनते जो कमेंट्री हो
शहर के शोर में हम गांव का सुकून खो दिए
हम आज के गुल में खुद को खो दिए
वो बारिश में बनाते कागज की कश्ती हो
लकडिय़ों से बनाया अपना छोटा सा बस्ती हो
अब तो जिम्मेदारों के बंधन में हम बंध गए
हम आज के गुल में खुद को खो दिए
वो जिद्दीपन से बात मनवानी हो
या स्कूल ना जाने का पेट दर्द बहाना हो
वो खुराफाती दिमाग न जाने अब कहां गुम हुए
हम आज के गुल में खुद को खो दिए
वो बेर-जामुन पत्थर का निशाना हो
या दूसरे के बाग से आम चुराना हो
सब रवानी अब जवानी में पिछड़ गए
हम आज के गुल में खुद को खो दिए
घर से मिलों दूर आए बचपना वहीं छोड़ आए
मंजिल की तलाश में बेफिक्री और सुकून खो दिए
अब हम मशरूफ जिंदगी के इम्तिहानों में हो गए
हम आज के गुल में खुद को खो दिए
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