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जब चाँद झांकता है छत से, बारिस जब मुझे भिगाती है
जब ठंडी ठंडी पुरवाई, कानों में कुछ कह जाती है
जब निपट अकेली रातों में, हम खुद से लग कर रोते हैं
जब सारी दुनिया सोती है, और हम ही जगते होते हैं
जब कोयल की कूहू कूहू में, राग पनप सा जाता है
जब घड़ी की बजती सुइयों से, तन मन विचलित हो जाता है
जब भीगी भीगी सड़को पर, चलने की आहट होती है
जब दिल के बन्द किवाड़ों पर, अब किसी की दस्तक होती है
जब मन का क्षीर सिंधु उफ्नाकर, आँखों में भर जाता हैं
जब प्रेम कहानी सुनते ही, मन अंतस से डर जाता है
तब तुम याद आते हो, मुझे तुम याद आते हो|
~आयुष कुमार कृष्ण✍️
जब ठंडी ठंडी पुरवाई, कानों में कुछ कह जाती है
जब निपट अकेली रातों में, हम खुद से लग कर रोते हैं
जब सारी दुनिया सोती है, और हम ही जगते होते हैं
जब कोयल की कूहू कूहू में, राग पनप सा जाता है
जब घड़ी की बजती सुइयों से, तन मन विचलित हो जाता है
जब भीगी भीगी सड़को पर, चलने की आहट होती है
जब दिल के बन्द किवाड़ों पर, अब किसी की दस्तक होती है
जब मन का क्षीर सिंधु उफ्नाकर, आँखों में भर जाता हैं
जब प्रेम कहानी सुनते ही, मन अंतस से डर जाता है
तब तुम याद आते हो, मुझे तुम याद आते हो|
~आयुष कुमार कृष्ण✍️
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