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कभी-कभी मैं सोचता हूं कि तुम ना होती तो क्या होता ?
क्या ये नदियां ऐसे ही बहती...?
क्या ये समंदर ऐसा ही रहता ?
क्या ये बादल ऐसे ही छाते...बिन मौसम बरस जाते ?
क्या ये धरती फिर स्वर्ग कहलाती ?
क्या उसे(धरती) तुम्हारी जैसी कोई अप्सरा, कोई परी, कोई हूर मिल पाती ?
क्या ये चांद ऐसे ही निकल आता ?
इक पखवारे दिखता... दूसरे में शर्म के मारे छिप जाता ?
वैसे शर्माने की उसके पास वजह भी है !
उससे प्यारा, उससे हसीन, उससे खूबसूरत... इसी जहां में इक और भी है !
तुम ना होती तो मेरी जिंदगानी में क्या होता ?
क्या ये रातें इतनी हसीन हो पाती ?
क्या ये दिन ऐसे ही बेसब्री से कट पाते ?
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