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ऐ मन मेरे तू साथ चल
कही भी चल बस साथ चल
इस धुंध से निकल जरा
कुछ साफ़ साफ़ न दिख रहा
यूँ खोहरे के बिच मैं
कब से आंखें मींच मैं
कर रहि हूँ कश्मकश
ऐ मन मेरे तू साथ चल ।
कहीं जहाँ मिले सुकून
जहाँ कहीं दीवार न हो
न साथ हो कीसी का भी
ना जाने वाला प्यार हो
गलत सही समझ नहीं
ना आर पार का पता
तू छोर सब का सोचना
घरी बदल समय बदल
ऐ मन मेरे तू साथ चल ।
क्यों पाप पुण्य
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