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मुक़द्दर वो न हुए, तो ना ही सही...
हमारा एक हसीं, हाफ़िज़ा ही सही...
न वो लौटेगा, ना वो गया वक्त,
याद आने को भुला बिसरा ही सही...
रक़ीब की फ़िक्र निहायत रखते है वो,
हमारे लिए कुछ बे-परवाह ही सही..
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