
Share0 Bookmarks 18 Reads0 Likes
मुक़द्दर वो न हुए, तो ना ही सही...
हमारा एक हसीं, हाफ़िज़ा ही सही...
न वो लौटेगा, ना वो गया वक्त,
याद आने को भुला बिसरा ही सही...
रक़ीब की फ़िक्र निहायत रखते है वो,
हमारे लिए कुछ बे-परवाह ही सही...
जीनत-ए-महफ़िल-ए-तसव्वुर आबाद है,
दर-हक़ीक़त हम ठहरे तन्हा ही सही...
मंजिल-ए-मक़सूद हो उसको मुबारक़,
दर-ब-दर भटकते हम गुमराह ही सही...
बद-अंजाम फक्त हमारे हिस्से “अवी”
वो थे और रहेंगे, बे-गुनाह ही सही...
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments