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प्रति छत, प्रति छज्जे पे
हुई सुशोभित दीपों की माला
प्रखर पवन से आलिंगन करके
जीवित हो उठती लघु ज्वाला
थक चुका सूर्य का तेज भी जब
तब भेद रही अमावस की हाला
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प्रति छत, प्रति छज्जे पे
हुई सुशोभित दीपों की माला
प्रखर पवन से आलिंगन करके
जीवित हो उठती लघु ज्वाला
थक चुका सूर्य का तेज भी जब
तब भेद रही अमावस की हाला
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