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अब कृष्ण नहीं आयेंगे ,
अब कृष्ण नहीं आयेंगे प्रार्थना पत्र लेकर ,
न ही अब इस और पांडव और उस और कौरव मिलेंगे ,
अब केवल और केवल शकुनी मिलेंगे ,
हर और तुम्हे षड्यांत के किस्से मिलेंगे ,
न खेला जाएगा खेल चौषठ का ,
नाही कोई द्रौपदी को दाव लगाएगा ,
फिर भी वो ही युद्ध इस धरा पर होगा ,
स्थान अलग पर रक्त ही बहेगा ,
रह जायेंगे प्यासे हृदय ,
व्याकुलता ये संसार सहेगा ,
हर एक मनुष्य खुद को खोएगा ,
एक की हठ में हर नर रोएगा ,
धरा पर केवल मृत्य देह मोलेंगे ,
वीरों के हाथो में ,
तलवारों के जगह दूसरे आभूषण सजेंगे ,
न कोई चक्रव्यू रचेगा ,
फिर भी असहाय अभिमन्यु होगा ,
हैं वही भीषण युद्ध यहां ,
दुबारा मही पर करण होगा ,
इस बार न अर्जुन रोकेंगे ,
न कृष्ण गीता के श्लोक खोलेंगे ,
न मिलेगी अब प्रेम की धार ,
केवल धोराएगा खुदको दुखद काल ,
मनुष्य पर फिर वो काल छाएगा ,
महाभारत का ग्रंथ धरा रह जायेगा ,
रह जायेगा दिनकर का काव्य ज्ञान ,
बुद्ध फिर खुदको द्वार पर पाएगा ,
न राम आयेंगे न रावण गाएगा ,
शिव भी खुदको शांत पाएगा ,
हर स्व धरा पर वंचित होगा ,
न जाने किन हाथों में वो प्राण खोएगा ,
अंधकार की छाया में ,
मनुज का मस्तक उछलेगा ,
जिसने भी युद्ध को प्रबल कहा ,
वो सुर वीर दुःख लूटेगा ।
– अविनाश जोशी ।
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