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ऐ मेरे मन !
तू क्यू है उदास ,
किससे है आस ।
न कोई अपना है,
न ही है गैर,
जो मनाता हो तेरी खैर ।
तू तड़पता है ,
तो भी मुझे ही दुःख होता है ।
तू मचलता है ,
तो भी मुझे ही दुःख होता है ।
तेरी तड़पन को भी,
कम नहीं कर सकता हूँ।
तेरी मचलन को "अवि ",
कम नहीं कर सकता हूँ ।
बस उस शख्स का,
इंतजार किये बैठा हूँ ।
जो तेरी खैर चाहता हो,
जो तेरी हर बात मानता हो ।
अविनाश "अवि"
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