Share0 Bookmarks 44415 Reads1 Likes
जो भी लिख गया सो लिख गया, फैज
अब न किरदार न लिखने वाला
एक घर जिसे उम्र भर बनाया मैंने
उसी की कीमत लगी है आज वही बिकने वाला
आखिरी बार उस चौखट पे सर रखकर रोया ऐसे
जैसे अपने गले से लिपटा हो अपना साया
रंग हरा हो.... लाल हो या कोई और
मुझे तो एक उसका रंग ही भाया
सोचता हूँ कितना फनकार है खुदा मेरा
एक इंसानी सूरत में जादूगर बनाया
मैंने जब भी उसका नाम अपनी कलम से लिखा<
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments