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सात जन्मों की बातें करने वाली,
एक नाक की बूंदें, दो कानों की बाली,
एक जोड़ी सूट, जो हो पसंद तुम्हें,
एक पत्ता बिंदिया और महावर बंगाल वाली,
कुछ और नहीं, बस इतना ही दिलवा दीजिए मुझे,
सजकर आऊँगी उस रात, भोर से बिछुड़ना है मुझे,
मैं अयोग्य, एक ख्वाहिश भी पूरी कर न सका,
कर्महीन इतना कि, कोशिश अधूरी भी कर न सका,
ख़ाली हाथ, नीचा मस्तक, दबी जुबान बुदबुदा रही थीं,
नज़रें जो नज़र चुराती थीं, वहीं नज़रें अब नज़र चुरा रही थीं,
देख असमंजस में मुझको, वो दौड़ मेरे पास आती हैं,
अधरों पर रखकर तर्जनी, वो गले मुझे लगाती हैं,
कोई बात नहीं जी, मैं तो आपकी जीना सिखला रही थी,
चाहत और हसरत में है, फ़र्क़ कितना बताला रही थी,
आइये कुछ देर को बैठें, ये अंतिम प्रहर है हमारा,
हो जाएं भले ही धूमिल स्मृतियां, रहेगा स्मरण प्रेम तुम्हारा,
एक अंतिम बात बताने को, तुम्हें अपने हृदय से लगाने को,
अपने ईष्ट के मंदिर में शादी का पहला कार्ड चढ़ाने को,
आयीं हूँ, करने को एक और प्रयास,
सोलह सोमवार के पुण्य का फल मिला नहीं, अब न करूँगी कोई उपवास,
वो भी समय आ गया, जब हाँथ छुड़ाकर मुझको होगा जाना,
देवता आते नहीं शादी में, इसीलिए तुम भी चले मत आना,
अच्छा अब हाँथ छोड़ो, अब मुझको जाने दो,
भविष्य बुनना है मुझे, वर्तमान मेरा सजाने दो,
हो तुम बहुत ही सरल, सहज, सौम्य और क्यूट,
सुनकर नाम मेरा, कर लेना होंठों को अपने म्यूट,
निवेदन अंतिम है मेरा आपसे, पूरा कर दीजिएगा
इस वेदना को आप मेरे शब्दों में कह दीजिएगा,
एक पीर मैं सहूँगी, दूजा आप सह लीजिएगा।
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